हम दोनों ही हार गए हैं - कान्हा कम्बोज
दोस्तों प्रेम कभी भी कही भी और किसी के साथ भी हो जाता है पर प्रेम होना और प्रेम को पाना अलग अलग होता है। प्रेम करना हमारे हाथ होता है। पर प्रेम का साथ होना किस्मत की बात है। इसी पर कान्हा कम्बोज की एक कविता लेकर आया हूँ जिसका शीर्षक है "हम दोनों ही हार गए" जैसा कि नाम से ही आपको पता चल गया होगा कि यह दर्द भरी कविता है इसमें बताया गया है। कि किस तरह प्रेमियों को प्रेम करने के बाद मजबूरियों, हालातों के आगे अपने प्यार की कुर्बानी देनी पड़ती है। और किस तरह उनका जीना दुश्वार होता है...जो आपको कविता पढ़ने के साथ साथ समझ में आ जायेगा। और जो ऐसी स्थिति से गुजर चुके हैं या गुजर रहे है वो इस कविता से बेहतर कनेक्ट कर पायेगें।
हम दोनों ही हार गए हैं - कान्हा कम्बोज
कि इस इश्क के खेले गए खेल में हम दोनों ही हार गए हैं तुझको मजबूरियों ने मार डाला मुझको तेरे गम मार गए हैं
तेरे भी इश्क पर एक इश्क की पगड़ी भारी थी
और मे ऊपर भी जाने जा पूरे घर की जिम्मेदारी थी
वैसे तो मैं खुश हूं पर शिकवे आते जाते हैं
तेरी याद दम घटती है तेरे गम मुझे रुलाते हैं
कोई हवा ऐसी नहीं है जो तेरी खुशबू ना लाती हो
कोई शाम ऐसी नहीं है जो तेरे बिन ढल जाती हो
पागल होना किसे कहते हैं आओ तुम्हे दिखलाऊं मैं
तेरी मेरी बातें सारी घर की दीवारों से बतलाऊँ मै
मैंने तो तुझको अपना सारी दुनिया मान लिया था
तुझको अपना करना है अपने दिल मे ठान लिया था
यह भी सच है तुझ पर मैं अपना कोई इल्जाम दूंगा
और अगर बेटी हुई पहली मुझको उसको तुम्हारा नाम दूंगा
दिन भर का थका हारा सूरज जब रात को बिस्तर पर सोता है तेरा आशिक अपने कमरे में सिसक सिसक कर रोता है
जितना दर्द था दुनिया में सब खंजर से तार गए हैं
इस इश्क के खेले गए खेल में हम दोनों ही हार गए हैं
हम दोनों ही हार गए हैं
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निष्कर्ष
उम्मीद करता हूं दोस्तों की आप सभी को कान्हा कम्बोज की यह कविता हम दोनों ही हार गए पसन्द आयी होगी। उस दर्द को महसूस किया होगा। इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करे। और अपना प्यार देने के लिये शुक्रिया