Swayam Srivastava Shayari । स्वयं श्रीवास्तव शायरी
हैल्लो दोस्तों आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है। आज में आपके लिए लेकर आया हु स्वयं श्रीवास्तव की कुछ बेहतरीन शायरी । स्वयं श्रीवास्तव उतर प्रदेश के लखनऊ के रहने वाले है। इनकी लिखी शायरी कविताएँ आजकल सोशल मीडिया पर बहुत वायरल है और इनका शायरी व कविता पढ़ने का जो अंदाज़ है वो लोगो को बहुत पसंद आया। इसके साथ ही वो टेलीविजन के वाह भाई वाह कार्यक्रम में भी अपनी प्रस्तुति दे चुके है।
Swayam Srivastava Shayari । स्वयं श्रीवास्तव शायरी
एक शख्स क्या गया, की पूरा काफिला गया
तूफ़ा था तेज, पेड़ को जड़ से हिला गया।
जब सल्तनत से दिल की ही रानी चली गई
फिर क्या मलाल तख्त गया या किला गया।।
किस्मत मे कोई रंग क्या धानी भी लिखा है
बस हरफ ही लिखे हैं, या मानी भी लिखा है।
सूखी जुबान जिंदगी से पूछने लगी
बस प्यास भी लिखी है की पानी ही लिखा है।।
पत्थर की चमक है न नगीने की चमक है
चेहरे पे सीना तान के जीने की चमक है।
पुरखों से विरासत मे हमें कुछ न मिला था
जो दिख रही है खून पसीने की चमक है।।
किस्मत की बाजियों पर इख्तियार नहीं है
सब कुछ है जिंदगी मे मगर प्यार नहीं है।
कोई था जिसको यार करके गा रहे हैं हम
आँखों मे किसी का अब इंतजार नहीं है।।
जंगल जो जलाए थे उनमे बस्तियां भी थी
काँटो के साथ फ़ूल पे कुछ तितलियाँ भी थी।
तुमने तो गला घोंट दिया तुमको को क्या एहसास
इसमे किसी के नाम की कुछ हिचकियां भी थी ।।
मुझको नया रोकिए, ना ये नजराने दीजिए
मेरा सफ़र अलग है मुझे जाने दीजिए।
ज्यादा से ज्यादा होगा ये की हार जाएंगे
किस्मत तो हमें अपनी आजमाने दीजिए।।
मुश्किल थी सम्भालना ही पड़ा घर के वास्ते,फिर घर से निकालना ही पड़ा घर के वास्ते।
मजबूरीयों का नाम हमने शौक रख दिया,
हर शौक बदलना ही पड़ा घर के वास्ते ।।
जिस रास्ते पे चल रहे उस पर हैं छल पड़े
कुछ देर के लिए मेरे माथे पर बल पड़े।
हम सोचने लगे की यार लौट चलें क्या
फिर सोचा यार चल पड़े तो चल पड़े।।
Swayam Srivastava Shayari In Hindi
किस्मत की बाजियों पे इख्तियार नही हैसब कुछ है जिंदगी में मगर प्यार नही है।कोई था जिसको याद करके गा रहे है हमआँखों मे अब किसी का इंतजार नही है।।
मुश्किल थी सम्हालना ही पड़ा घर के वास्तेफिर घर से निकालना ही पड़ा घर के वास्ते।मजबूरीयों का नाम हमने शौक रख दियाहर शौक बदलना ही पड़ा घर के वास्ते।।
आँखों से मेरे नींद की आहट चली गयीवो घर से गया घर की सजावट चली गयी।इतनी हुई खता की लब को लब से छू लियाइन शहद से होंठो की तरावट चली गयी।।
जब डर पता चला तभी ताकत पता चलीसीने में आग सीने की हिम्मत पता चली।शर्तो पे तेरी बिकने से इन्कार कर दियाजब जाके अपने आप की कीमत पता चली।।
काँटे बना रहे कोई गुल बना रहेकुछ लोग कही काक को बुलबुल बना रहे।तुम रास्तों को खाई में तब्दील कर रहेहम लोग उन्ही खाइयों पे पूल बना रहे।।
डरना नही किसी की पैरों की नाप सेआखिर में पुण्य जीत ही जायेगा पाप से।गीता में कृष्ण ने कहा अर्जुन से बस यहीपहली लड़ाई जीतनी है अपने आप से ।।
कल भोर की चिंता में नींद न आनीरावण नही है मारना, रोटी है कमानीहम राम तो नही, मगर यह बात भी सच हैहर आदमी की होती है एक राम कहानी
मायूस होके द्वार से लाचार जाएगाइस झूठ का हर वार ही बेकार जाएगाये ठीक है कि थोड़ी देर लग रही है परकैसे लगा ये तुमको की सच हार जाएगा
हालात बदलने से यह दस्तूर हो गएसाया थे जितने ख्वाब चकनाचूर हो गए।तेरा की किसी बाँह के घेरे में घर हुआहम भी किसी की माँग का सिंदूर हो गए।।
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स्वयं श्रीवास्तव की शायरी,गीतों,नज्मों को और
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निष्कर्ष
आशा करता हु कि आपको स्वयं श्रीवास्तव की शायरी बहुत पसंद आई होगी। अगर पसन्द हो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ जरूर शेयर करे। और अपने सुझाव हो तो हमे कमेंट बॉक्स में जरूर भेजे। और अगर आप भी अपनी कोई शायरी या कविता हमारे माध्यम से प्रकाशित कराना चाहते है तो कंमेंट बॉक्स के संपर्क करे। धन्यवाद