गलत कहाँ था मै- तरुण कुमार पोएट्री
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हेलो दोस्तों आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। दोस्तों आज में एक कविता लेकर आया हु जिसका शीर्षक है "गलत कहाँ था मै" जिसे मैंने यानी कि तरुण कुमार ने लिखा है। दोस्तों जिंदगी में कई बार ऐसा वक़्त आता है या यूं कहें कि जिंदगी में ऐसे लोग आते हैं। जो हमे गलत या बुरे ठहराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते है। उस समय आपकी कोई भी अपील दलील काम नही आती। तो उस समय जो मनोस्थिति बनती है उसी को मैंने शब्दो मे पिरो कर आपके सामने प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। जिन नजरो को बुरा देखने की जब आदत पड़ जाती है तो उन्हें सामने की लाख अच्छाई भी नजर नही आती है। जैसे दुनिया मे आज भी कई लोग है जो मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम में भी बुराइयां ढूंढते है
गलत कहाँ था मै- तरुण कुमार पोएट्री
तू ढूंढती है गलत कहा कहा मैमें पूछता हू कि गलत कहाँ था मैमेरी अच्छाई को तूने ढूंढा ही नहीथोडी बहुत तारीफे मेरी, वो भी तुझे कहा लगती सहीसाल दर साल बदलेतानों भरे तेरे सवाल न बदलेबहुत बदला खुद को तेरी खातिरपर तेरी नजरो मे फिर भी न बदलेपता नहीं कब तक यह हाल रहेगामै अच्छा हू, क्या यह सिर्फ एक ख्याल रहेगाक्या मैं भी अपनी नजरो से उठ पाऊँगाया गलत न होकर भी, गलत के साथ ही दफन हो जाऊँगायह तानो भरी जिन्दगी अब सही न जातीदर्द देती है ये बाते, पर किसी से कही भी नहीं जातीडर से तुझे अब कुछ कह भी नहीं पाता हूनजरों में आने से पहले, तेरी नजर मे आ जाता हूसाथ रहकर ऐसा कब तक चलेगातु ही बता सही गलत कब तक साथ चलेगामैं खुद ही दूर चला जाता हूँ ऐसा करचल छोड, में बताता हू जैसा करऐसा कर मेरे मरने की दुआ करतब सही बनकर सामने आऊँगा मैजब तक जिन्दा हैतुझे गलत ही नजर आऊँगा मै
निष्कर्ष
दोस्तो उम्मीद करता हु की आपको मेरी लिखी कविता "गलत कहाँ था मै" आपको पसंद आयी होगी। हर किसी के जीवन मे ऐसा कोई न कोई एक करेक्टर होता है। जो हमारी अच्छाइयों को नजर अंदाज करके हमे गलत साबित करने में लगा रहता है। आप इस बात और इस कविता पर कहा तक सहमत है मुझे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। धन्यवाद