धंधेवाली - अनसुनी दास्ताँ
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Sonofshayrii ब्लॉग पर आपका तहे दिल से हार्दिक है। आप एक शायरी प्रेमी है और मेरे ब्लॉग पर आए इस बात की मुझे बहुत खुशी हुई। इस post में आपको Dhandhewali ! धंधेवाली- अनसुनी दास्तां कविता पढ़ने को मिलेगी। इस कविता को तरुण कुमार यानी कि मैंने लिखा है। धंधेवाली जिसे हम वेश्या भी कहते है। वेश्या या prostitute जो पैसो के लिए अपने देह या शरीर का व्यापार करती है। यह कविता उनके जीवन की एक तरह से व्यथा बयां करती है। और इसमे बताया गया है। कि vaishya या prostitute गया तवायफ का जीवन हमे जितना सुखद या मजेदार दिखता है असल मे उनका जीवन कितना दर्द भरा होता है। और उन्हें जीवन मे कितनी यातनाओं को भोगना पड़ता है। यह इस कविता में बताया गया है। किस तरह वो इस धंधे में आती है । कई लोग इसे शौक का नाम दे देते हैं। पर ज़्यादातर यह मजबूरियों के शिकार हुई होती है।
धंधेवाली - अनसुनी दास्ताँ
बड़े सहज भाव से कह गया धंधेवालीपर सुनता तो दास्तान ऐ ज़िन्दगी हमारीकिन्ही की मजबूरिया होगीकोई दलालो की भेंट चढ़ी होगीकिन्ही को कागज़ के नोटों की खातिर अपने ही माँ बाप ने बेच दी होगीखिलखिलाहट देखी होगीपर यह नही देखा उसके पीछे हम कितना रोतेघर छुट जाते है साहबघरो के नाम पर होते है कोठेकोठो की पहली सीढ़ी पर ही सपने सारे टूट जाते हैकिन्हें हम अपना कहे रिश्ते नाते सब रूठ जाते हैकोठो की दूसरी सीढ़ी पर मर्यादा मर जाती हैबस तन की भूख मिटाने का सामान बन कर रह जाती हैकोठो की तीसरी सीढ़ी पर करना पड़ता है इज़्ज़त का त्यागतभी खुलते है कोठो के द्वारफिरसूरज को तो तस्वीरों में तखना पड़ता हैउन अंधेरो में घूंट घूंट के जीना पड़ता हैहमारी अंतरात्मा भी हमसे लड़ती हैखुद भले ही हो भूखीपर हवसी की भूख मिटानी पड़ती हैखुद की सेज का पता नहीदुसरो की सेज सजानी पड़ती हैखुद की नींद उडा कर दुसरो की रात रंगीन करनी पड़ती हैअंधेरे में जो मिलने को आतुर रहते हैंदिन में देखकर वो मुँह फेर लेते हैदुनिया इज़्ज़त भी हमारी लूटती हैगलीच नाम भी हमे ही देती हैऔर तो और बाज़ारो में बदनाम भी हम ही को कहती हैफूलों से जैसे खुश्बू को अलग कर जाते हैचंद पैसो के बदले बेरहम दुनिया वाले जिस्म के साथ हमारी रूह को चीर जाते हैहमे गन्दी भी कहतेफिर भी हमारा भोग करतेखुद तो बने रहते है साफ़ सुथरेऔर हमे वेश्या कहतेतब हमारी रूह भी रोने लगती हैजब इंसान को नरभक्षी बने देखती हैएक बात तो हमरी भी ख़ास हैहम पैसो के लिए जिस्म बेचती हैदुनिया वालो की तरह नहीजिस्म के लिए दिल नही बेचतीमोहब्बत के बाज़ारो से तो हमारा बाजार अच्छा हैयहाँ सिर्फ जिस्म बिकता है दिल नही बिकता है
वेश्या की चाहत
चाहत है अंधेरी गलियों से बाहर आने कीचाहत है मुझे भी घर जाने कीचाहत है अपनों को गले लगाने कीचाहत है किसी को अपना कह कर बुलाने कीचाहत है कोई बेटी कहे, कोई कहे बहनाबाज़ारों ने घूमती फिरू पहन के इज्जत का गहनाकिसी के ख्वाबों की रानी बनूमें भी किसी की दीवानी बनूमाँग में किसी के नाम का सिंदूर होबनु दुल्हन, मेरे भी सात फेरे होछोटा सा घरखुशियों भरा संसार होमेरा भी एक छोटा सा परिवार हो
निष्कर्ष
आशा करता हु की आपको मेरी लिखी कविता धंधेवाली - अनसुनी दास्ताँ पसन्द आयी होगी। आप इस कविता के माध्यम से किसी वेश्या या prostitute के उस दर्द से वाकिफ हो गए होंगे जो अक्सर वो अपनी मुस्कुराहट के पीछे छुपा कर रखती है। आप अपना प्यार इस ब्लॉग पर बनाये रखना और बेहतरीन शायरियों व सहित्य को पढ़ने के लिए इस ब्लॉग पर विजिट करते रहे। इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें धन्यवाद।