आरंभ है प्रचंड लिरिक्स इन हिंदी - पीयूष मिश्रा
हेल्लो दोस्तो एक बार फिर से आपका मेरे इस ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है आज दोस्तो में लेकर आया हु पीयूष मिश्रा की लिखी कविता आरंभ है प्रचंड लिरिक्स इन हिंदी यह एक मोटिवेशनल कविता है जो आपको आपके जीवन मे बहुत मदद करेगी। क्योंकि कई बार कई काम हिम्मत से नही हौसलों से होते है। मोटिवेशन हमारे हौसलों को हिम्मत देता है। इस कविता संगीत गुलाल फ़िल्म में भी गाया गया है। इस कविता के माध्यम से कवि ने यही बताने का प्रयास किया है कि आप कोई भी कार्य कर रहे हो तो उसे पूरे जोश और जुनून के साथ करो। चाहे उसमे कितनी भी मुसीबते क्यों न आये आप डटे रहो। लास्ट तक डटे रहे ।तभी जाकर सफलता आपके चरणों मे होगी।
आरंभ है प्रचंड लिरिक्स इन हिंदी
आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन-बान शान या कि जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन-बान शान या कि जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरंभ है प्रचंड
मन करे सो प्राण दे
जो मन करे सो प्राण ले
वो ही तो एक सर्वशक्तिमान है
मन करे सो प्राण दे
जो मन करे सो प्राण ले
वो ही तो एक सर्वशक्तिमान है
कृष्ण की पुकार है
ये भागवत का सार है
कि युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरोवों की भीड़ हो
या पांडवों का नीड़ हो
जो लड़ सका है वो ही तो महान है
जीत की हवस नहीं
किसी पे कोई वश नहीं
क्या ज़िन्दगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं , तो मौत से भी क्यूँ डरें
ये जाके आसमान में दहाड़ दो
आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन-बान शान या कि जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरंभ है प्रचंड
वो दया भाव या कि शौर्य का चुनाव
या कि हार का वो घाव तुम ये सोच लो
वो दया भाव या कि शौर्य का चुनाव
या कि हार का वो घाव तुम ये सोच लो
या की पुरे भाल पे जला रहे विजय का लाल
लाल यह गुलाल तुम ये सोच लो
रंग केशरी हो या मृदंग केशरी हो
या कि केशरी हो ताल तुम ये सोच लो
जिस कवि की कल्पना में ज़िन्दगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो
भीगती मासों में आज, फूलती रगों में आज
आग की लपट का तुम बघार दो
आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन-बान शान या कि जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरंभ है प्रचंड
आरंभ है प्रचंड
आरंभ है प्रचंड
निष्कर्ष
दोस्तो आशा करता हु आपको पीयूष मिश्रा की लिखी यह कविता आरंभ है प्रचंड लिरिक्स इन हिंदी पसन्द आयी होगी। अगर पसन्द आयी हो तो अपनी राय या कोई सुझाव हो तो मुझे कमेंट बॉक्स में जरूर दे। धन्यवाद