Suryaputra Karn Kavita ( रणभूमि में छल करते हो)

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हैल्लो दोस्तों मेरे इस ब्लॉग पर फिर से हार्दिक स्वागत है। आज में आपके लिए लेकर आया हु कुमार संभव की  सूर्यपुत्र कर्ण कविता ( रणभूमि में छल करते हो) | इस कविता में कुमार सम्भव जी ने सूर्यपुत्र कर्ण की व्यथा को बयां किया है । इसमे बताया गया है  कर्ण का पूरा जीवन  श्रापित जीवन  सा था। उसके जीवन मे अपने कोई थे ही नही। जो अपने थे वो सिर्फ कहने मात्र के थे। इसके अलावा  इसमें कर्ण की श्री कृष्णा से शिकायत भी बताई गई है कि श्री कृष्णा ने रणभूमि में भी उसके साथ छल किये फिर वो कैसे भगवान हो सकते है। आप यह कविता पढोगे तो आप भी सूर्यपुत्र कर्ण का दर्द समझ जाओगे।।


सूर्यपुत्र कर्ण कविता ( रणभूमि में छल करते हो)


suryaputra karn kavita


सारा जीवन श्रापित श्रापित हर रिशता बेनाम कहो

मुझको हे छलने के खातिर मुरली वाले श्याम कहो

किसे लिखु मै प्रेम की पाती, कैसे कैसे इंसान हुये

रणभूमि में छल करते हो, तुम कैसे भगवान हुये


मन कहता है, मन करता है, कुछ तो माँ के नाम लिखु

इक मेरी जननी को लिख दु, इक धरती के नाम लिखु

प्रश्न बड़ा है मौन खड़ा, धरती संताप नही देती

धरती मेरी माँ होती तो, मुझको श्राप नही देती

जननी माँ को वचन दिया,पांडव का काल नही हुँ मै

जो बेटा गंगा मे छोड़े, उस कुंती का लाल नही हुँ मै

क्या लिखना इन्हे प्रेम की पाती,जो मेरी ना पहचान हुये

रणभूमि में छल करते हो तुम कैसे भगवान हुये


सारे जग का तम हरते, बेटे का तम ना हर पाये

इंद्र ने विषम से कपट किये, बस तुम ही सम ना कर पाये

अर्जुन की सौगंध की खातिर, बादल ओट छुपे थे तुम

श्री क्‌ष्ण के एक इशारे, कुछ पल अधिक रुके थे तुम

पार्थ पराजित हुआ जो मुझसे, तुम को रास नही आया

देख के मेरे रण कौशल को, कोई पास नही आया

दो पल जो तुम रुक जाते तो, अपना शौर्य दिखा देता

मुरली वाले के सम्मुख, अर्जुन का शीश गिरा देता

बेटे का जीवन हरते हो, तुम कैसे दिनमान हुये

रणभूमि में छल करते हो तुम कैसे भगवान हुये


पक्षपात का चक्रव्युह क्यो द्रोण नही तुम से टूटा

सर्वश्रेष्ट अर्जुन ही हो, बस मोह नही तुम से छूटा

एकलव्य का लिया अंगूठा, मुझको सूत बताते हो

खुद दौने में जन्म लिया और मुझको जात दिखाते हो


अब धरती के विश्व विजेता परशूराम की बात सुनो

एक झूठ पर सब कुछ छीना, नियती का आघात सुनो

देकर भी जो ग्यान भुलाया, कैसा शिष्टाचार किया

दानवीर इस सूर्यपुत्र को, तुमने जिंदा मार दिया


फिर भी तुमको ही पूजा है, तुम हे बस सम्मान हुये

रणभूमि में छल करते हो तुम कैसे भगवान हुये


वीडियो:-  https://youtu.be/KR_tNQOd4DU


निष्कर्ष


दोस्तों कुमार सम्भव द्वारा रचित सूर्यपुत्र कर्ण कविता ( रणभूमि में छल करते हो) आपको कैसी लगी । अपने सुझाव मुझे कंमेंट बॉक्स में जरूर भेजे। इसे अपने दोस्तों के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। धन्यवाद

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