फैलियर - पास होता तो पछतावा होता
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हेल्लो दोस्तो आपका मेरे ब्लाग पर फिर से हार्दिक स्वागत है। आज बडे दिनो बाद आपसे फिर मुलाकात हो रही है। आज में आपके लिए लेकर आया एक प्रेम कहानी जिसे मैंने यानी तरुण कुमार ने लिखने की कोशिश की है। यह मेरी पहली कहानी होगी जिसे में लिखने का प्रयास कर रहा हू । यही वजह रही की आज इतने दिनों बाद पोस्ट डाल रहा हूँ। इस कहानी का शीर्षक है "फैलियर" (Failure) फेलियर नाम का हर एक के जीवन मे अलग अलग मायने हो सकते है जैसे कोई परीक्षा में फेल, कोई सपनो को पाने में फेल, कोई अपने केरियर मे फेल.... पर मेरी कहानी का मुख्य किरदार तनिष्क कक्षा में फेल, प्यार में फेल होकर भी कोशिश और किस्मत के सहारे अपने प्यार में कामयाबी पा लेता है। कहानी का नाम "फेलियर" इसलिए भी रखा मैने की कमी कभी जिन्दगी में फेल होना खत्म होना नहीं होता क्या पता वह शुरुआत हो । मेरी यह कहानी भी जिन्दगी की तरह है। जिसमे अन्त मालूम नही फिर भी चलती जा रही है।
मेरी कहानी से के सभी पात्र, धर्म, रिति-रिवाज, घटनाए, उनके विचार महज मेरे दिमाग की उपज है। जिसका किसी से कोई संबंध नहीं है।
मेरी कहानी पढ़ने आये हो....यह बताओ आँखों मे आँसू लाये हो.....
फैलियर - पास होता तो पछतावा होता
Failure- part 1
बात उन दिनों की है। जब मैं कक्षा 12 में था, बोर्ड के एग्जाम शुरू हो चुके थे। आज एग्जाम का पहला दिन था मैं सुबह नहा, धोकर तैयार हुआ नाश्ता किया और जैसे ही रवाना होने लगा कि पीछे से मां ने आवाज दी बेटा तनिष्क दही तो खाता जा, शगुन अच्छा होता है। माँ ने अपने हाथों से दही खिलाया और विजय भवः का आशीर्वाद दिया। मेरी मां सुधा कम पढ़ी लिखी है इसलिए शब्दों का इतना ज्ञान नहीं था। और विजय भव: का आशीर्वाद दे दिया, पर सोचे तो सही ही आशीर्वाद दिया होगा माँ ने । क्योंकि व्यक्ति का जीवन किसी रण से कम नहीं है । पर जय और पराजय अगर आशीर्वाद के हाथों में होती तो "दुनिया की कोई भी संतान बदनसीब नहीं होती" क्योंकि माँ से बेहतर तो भगवान भी किसी का भाग्य नहीं लिख सकता। यही सब सोचते सोचते आखिर स्कूल पहुंच गया। थोड़ी सी घबराहट और बेचैनी बढ़ने लगी। पर यह कोई नई बात नहीं थी, अक्सर ऐसा हर परीक्षार्थी के साथ होता है। जैसे ही बेल बजी सब अपने एग्जाम हॉल की और बढे मैं भी। एग्जाम में बैठा छात्र उस योद्धा की तरह होता है, जिसे अंतिम परिणाम रण क्षेत्र में ही मालूम पड़ जाता है। मेरी स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी। मुझे मेरा परिणाम पता था। क्योंकि मैंने पूरा साल आवारागर्दी, गप्पे लड़ाने और खेलने में गुजार दिया। मेरा परिवार इससे बिल्कुल वाकिफ ना था। उन्हें उम्मीद थी, जब मेरा परिणाम आया तो उनकी सारी उम्मीद टूट गई। और इस उम्मीद के साथ और भी बहुत कुछ टूट गया जिसकी मुझे उम्मीद ना थी। मां का बेलन टूटा जो उन्होंने मेरी तरफ रोटी बनाते-बनाते फेंका। ऐसी नही है मेरी मां...वह मुझे बहुत प्यार करती है। पर आज पड़ोसियों ने उस प्यार में अपना राग, द्वेष, क्रोध, मेरे फेल होने के ताने... सारे मिला दिये थे। पिताजी का चश्मा भी टूट गया जब वो मुझे डांट रहे थे तब हाथ से गिर गया। लेकिन मुझे पता था, इस पराजय मैं योद्धा का सबसे बड़ा शस्त्र उसका मौन होता है। मैं भी वही किया परिणाम यह हुआ कि उसे मौन के आगे क्रोध ने दम तोड़ दिया। और मां ने कहा पहले खाना खा ले, सुबह से कुछ नहीं खाया अभी तक..
अपनी मां की इकलौती संतान हु वह चाह कर पर मुझसे ज्यादा देर तक नाराज नहीं रह सकती।
हां पापा अभी भी नाराज थे उनको मुझे यह उम्मीद कतई नहीं थी। सूरज ढलने के साथ साथ पापा की नाराजगी भी ढल गयी। रात को सभी ने साथ खाना खाया और सो गए।
सभी को लगा आज का दिन कितना बुरा गुजरा।
पर मुझे किसी ने नहीं पूछा कि तुझे कैसा महसूस हो रहा है? मुझे बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा बल्कि मैं तो यही चाह रहा था फेल हो जाऊं... और फिर से कक्षा 12 में पढू... पर किसी को ना बता सकता था। इसका कारण यह था, कि कक्षा 11 में तनिशा नाम की लड़की पढ़ती पढ़ती थी, जो मुझे बहुत पसन्द थी। स्कूल रुपी मंदिर में बस इस देवी के ही दर्शन करने जाता था।
डर था अगर पास हो गया तो मुझे कॉलेज में जाना पड़ेगा। फिर उसके दर्शन नहीं हो पाएंगे । इसलिए मैं वहीं ठहर गया आगे बढ़ने की हिम्मत ना हुई। ऐसा नहीं था कि मैं कमजोर था, बस उससे दूर जाने का जोर ना था।
गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो गयी। मन कर रहा था कब छुट्टियां खत्म हो और मैं फिर से कक्षा 12 में उसके साथ बैठूं। और उससे वह सब बातें करूं जो साल भर मैं स्कूल बैग में लेकर जा रहा था। वैसे दिन कटते देर नहीं लगती, पर इंतजार के दिन बड़ी मुश्किल से कटते हैं। मेरे साथ भी वैसा ही हुआ छुट्टियों के दिन साल से भी ज्यादा लगे। लेकिन आखिर वह रात आ ही गयी। कल स्कूल खुलने वाले हैं। रात भर नींद ना आई सुबह जल्दी से तैयार होकर बड़े उत्साह के साथ,
मां पापा की नजर बस मुझ पर रही थी शायद सोच रहे होंगे यह फेलियर या बहादुर है या फिर पागल
स्कूल बैग में पुरानी किताबें, कॉपी और टिफिन के साथ वह सारी बातें डाल दी जो मुझे उसके साथ करनी थी। समय से पहले स्कूल पहुंच गया था। वहाँ सब मेरे जूनियर थे मैं अकेला ही सीनियर क्योंकि कक्षा 12 का 100% रिजल्ट को मैंने रोक जो दिया था, यहाँ सब अपरिचित लग रहा था, बस परिचित कोई था थी तनिशा
Part 2 स्कूल का पहला दिन
तनिशा को स्कूल में आये अभी 2 साल ही हुए थे। कक्षा 10 में वो आयी थी। पर मुझे ऐसा लगता था, जैसे इस जन्म से पहले से मैं इसे जानता हु। उम्र का कच्चा था पर प्यार के मामले मे पूरा पक्का यह सब लव स्टोरी मूवी देख देख पर सीखा था ।
मुझे भी प्यार के उन हसीन पलो का इंतजार था, कि कब वो मेरी जिंदगी में आये और मेरी जिंदगी जन्नत बन जाये।
नजरे चारो तरफ घूम घूम कर उसकी तलाश रही थी, पर वो कही नजर नहीं आयी। स्कूल का समय भी हो गया बेल बज गयी। सब अपने क्लासरूम में जाकर के गये में भी बैठ गये। मैं भी बैठ गया। क्लास में भी नहीं थी। प्रार्थना सभा की बेल बजी सब प्रार्थना मे गये | प्रार्थना के समय तनिशा आयी अपना बेग क्लासरूम मे रखकर प्रार्थना में आ गयी। प्रार्थना से लौटते समय मन में एक उदासी छायी हुई थी कि पहला दिन था जिसके लिए उत्साह से आया था आज वह नही आयी।
जैसे ही क्लासरूम मे पहुंचा मेरे आगे की सीट पर तनिशा को देखा । कदम रुक से गये साँसे जैसे ठहर सी गयी हो। आंखों मे उसके सिवा कुछ न दिख रहा था। फिर होश संभालकर अपनी सीट पर आकर बैठ गया। मन आज फेलियर होने पर भी गर्व में अनुभूति करा रहा था। हमेशा जीत कर ही सब कुछ पाया नही जाता कभी कभी हार कर भी बहुत कुछ पाया जा सकता है। आजे मुझे यह बात समझ आ गयी थी।
तभी क्लास रूम में टीचर आये, सभी को गुड मॉर्निंग कह कर अपनी चेयर पर बैठ गए। अपना रजिस्टर खोलकर सभी को उसकी उनका हाजरी नंबर (attenence number) बताया और सभी की attenence ली। अपनी मेरा हाजिरी नंबर तनीषा के जस्ट पहले ही था। मेरा 25 और तनिशा का 26। मेरे बाद तनिशा की प्रेजेंट सर वाली आवाज मानो ऐसा लग रहा था,वह मेरे दिल में अपनी प्रजेंट या उपस्थिति दे रही हो। तभी उधर से टीचर ने कहा तनिष्क तुम तो फैलियर हो ना...
यह सुनकर मैं धीमी सी हा भर दी
क्लासरूम में सभी को बुरा लगा सिर्फ मुझे छोड़कर
टीचर को यह उम्मीद नहीं थी
तनिष्क तुम आगे की बेंच पर आ जाओ तनिशा के पास बैठ जाओ आया
मुझे कुछ समझ नही आया ऐसा क्यों कहा पर जो भी हो टीचर ने मेरा मन की बात कहती थी।
मैं अपना बैग लेकर अगली बेंच पर तनीशा के पास बैठ गया
टीचर ने तनिशा को खड़ा किया और बताया इसने कक्षा 11 में प्रथम स्थान प्राप्त किया था और बोर्ड में भी इससे बेहतर परिणाम की उम्मीद करता हूँ
मेरा माथा ठनका अब पता चला कि टीचर ने मुझे इसके साथ क्यों बैठाया होशियार के पास बैठकर मुझे भी होशियार बनना चाहते हैं
दोनों पास में बैठे थे पर दूरियां थी... वह कक्षा में प्रथम स्थान वाली और में फैलियर
पर मुझे इसकी परवाह न हुई मुझे तो उसके दिल में टॉप करना था
स्कूल का रूटीन शुरू हुआ पीरियड (क्लास) बदलते गए टीचर आते गए, पढ़ते गए और चले गए। लंच का टाइम हो गया था। कुछ बच्चे घर चले गए कुछ वहीं बैठे अपना लंच करने लगे।
मैंने देखा तनिशा ने भी टिफिन लाया है। मैंने वहीं बैठ कर अपना टिफिन खोला
अभी तक हमारी बात नहीं हुई थी।
सोचा टिफिन से दोस्ती करा लू
"तनीषा खाना खाओगी"
"नहीं टिफिन लाई हूं"
"अच्छा"
"क्या लाई हो टिफिन में"
"गोभी के पराठे"
"और तुम"
"आलू के पराठे.....लो तुम लो"
उसने आलू का पराठा लेकर मेरे में गोपी का पराठा रख दिया ऐसा लग रहा था मेरा दिल लेकर उसने अपना दिल दे दिया हो "तनिष्क तुम्हारे कक्षा 11 कितने परसेंट बने थे"
"89"
"ओह.. मुझसे भी ज्यादा मेरे 85 है, फिर तुम 12th में फेल कैसे हो गए"
इतने होशियार होकर फेल हो गए बात कुछ जँची नहीं
उस पगली को कौन समझाए इसे फेल होना नहीं ठहरना बोलते हैं
"कोई बात नहीं अबकी बार हम दोनों पास हो जाएंगे"
हम दोनों शब्द दिल को इतना सुकून दे गया पूछो मत
एक साल से हम दोनों के ही रुका हुआ था
लंच ब्रेक खत्म हो गया, स्कूल रूटीन फिर से शुरू फिर छुट्टी उसने बाय-बाय किया वह अपने घर की तरफ मैं अपने घर की तरफ निकल पड़ा
कदम घर जाना नहीं चाहते थे
सोचता हूं इस स्कूल की कभी छुट्टी ना हो
रात दिन यही रहे...दिन भी उसके साथ उगे और रात भी उसके साथ हो
यहां सब अपने हाथ में कहां होता है अगर सब अपने हाथ मे होता तो खाली हाथ कुछ पाने की खातिर दिन रात यू दौड़ा न करते।
part 3 दोस्ती से दीवानगी तक
मन झूम रहा था, शरीर भी नाचना चाह रहा था, पर नाचे भी तो कैसे..लोगों की नजरों में बेवजह नाचना बेवकूफी और पागलपन जो कहलाता है ।
मां किचन में सब्जी बना रही थी, उसे देखते ही माँ का आशीर्वाद विजय भव: याद आया जो मुझे आज सार्थक लगा माँ तो माँ है। क्या पता माँ के मन ने मेरा मन पढ़ के ही यह आशीर्वाद दिया हो। पर जो भी हो माँ संतान के खुशी के अलावा कुछ सोच भी तो नहीं सकती।
मैं खाना खाकर होमवर्क करने लग गया । पापा भी आ गए मेरे पापा लोकेश शर्मा जो सेल्समैन का काम करते थे
दिनभर दौड़ भाग, शाम को थके हारे घर आते थे। दिन भर दौड़ भाग के बदले परिवार के लिए खुशियां, सुख खरीद कर लाते थे। आते ही मम्मी ने उन्हें चाय दी। पापा चाय पीकर टीवी देखने लग गए। एक आध घण्टे बाद मम्मी ने उनके लिए खाना लगा दिया पापा खाना खाकर सो गए।
मम्मी घर का काम निपटा रही थी। और में अपना होमवर्क
फिर मम्मी ने बिस्तर किया और सो गए।
सुबह हुई। पापा कम पर चले गए। और मैं भी तैयार होकर स्कूल...
गेट पर ही तनिशा आती दिखी कि मैं रुका दूर से ही उसने hii किया मैंने भी hii किया।
मेरी तरफ बढ़ते उसके कदम दिल को सुकून से भर रहे थे।
फिर साथ-साथ स्कूल के अंदर जाने लगे मानो ऐसा लग रहा था जैसे राम सीता संग अपने दरबार में जा रहे हो। तनिशा कल से ज्यादा आज खुश थी।
तनिशा आज बड़ी खुश हो।
हां।
क्या बात है खुशी की?
आज पापा ने अपना प्रॉमिस पूरा कर दिया।
कौन सा प्रॉमिस?
उन्होंने कहा था कक्षा 11 में प्रथम स्थान लाओगी तो मोबाइल लाकर दूंगा मैंने प्रथम स्थान लाया और पापा ने मेरे लिए मोबाइल...
(तनिशा के पापा योगेश अग्रवाल पैसे से वकील थे,पहले शहर में रहते थे। अभी 2 साल पहले ही अपने गांव में शिफ्ट हुए। जो मेरे गांव से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर था। )
हम बातें करते-करते क्लासरूम में पहुंचे।
प्रार्थना की बेल बजी सभी प्रार्थना हाल की ओर चले पर मेरे लिए तो मेरी प्रार्थना, मेरी पूजा सिर्फ तनिशा थी।
प्रार्थना खत्म होने के बाद वापस क्लासरूम में पहुंचे।
तनिशा के साथ बैठते हुए मुझे ऐसा लग रहा था। जैसे किसी राजा के पास कोई फकीर सिंहासन पर बैठा हो।
इसे गर्व कहो। चाहे प्यार का पागलपन।
पहली क्लास हिंदी की थी जो विधि मैम पढ़ाया करती थी आते ही मैंम ने पहला अध्याय खोला और पढ़ना शुरू किया
अध्याय खत्म होने के बाद में ने कुछ व्याकरण का ज्ञान दिया बच्चों अभी हम पढ़ेंगे संधि।
संधि किसे कहते हैं?
बताओ....कोई तो बताओ।
चलो मैं बताती हूं।
संधि का मतलब शब्दों या वर्णों के मेल को कहते हैं।
इसके विपरीत शब्दों या वर्णों का अलग-अलग करने की प्रक्रिया विच्छेद कहलाती हैं।
विच्छेद शब्द ने मेरे मन में छेद सा कर दिया।
कहीं मेरा तनिशा से कभी विच्छेद हो गया तो...
कभी तनिशा मुझसे दूर गयी तो...
तनिशा मुझसे अलग हो गई तो.....
मन बुरे ख्यालों में डूब गया पता नहीं चला कब क्लास है खत्म हो गई लंच का टाइम हो गया।
तभी तनिशा ने आवाज दी।
आज लंच नहीं करना क्या तुझे? या टिफिन नहीं लाया।
लाया हूं ना टिफिन
तू सोच क्या रहा है, बाहर निकाल खाना खाते हैं
मन नहीं कर रहा
क्यों क्या हुआ?
(उसे कैसे बताऊं जिसे पाया नहीं अभी तक उसे खोने से डर रहा हूं)
अरे खा न
नहीं तू खा यार
तू नहीं खा रहा है। चल मैं भी नहीं खाती।
2 दिन की दोस्ती इतनी गहरी हो गई मुझे समझ नहीं आया। अपना टिफिन बॉक्स खोला गोभी की सब्जी और पूडी टिफिन तो खुल चुका था पर मुंह नहीं खुल रहा था।
इतने में तनिशा ने एक निवाला लेकर कहा ले खा।
मुंह मना नहीं कर पाया क्योंकि ऐसे मौके हर रोज थोड़ी ना मिलने वाले थे
खाने का स्वाद भी बदल गया उसके हाथों से। मां के बाद पहली बार किसी ने इतने प्यार से जो खिलाया।
तो बता मन क्यों नहीं कर रहा था खाने का? क्लासरूम में भी उदास क्यों थे?
जवाब जुबान पर था, पर बताता कैसे? क्या पता? वह नाराज हो जाए।
बाद में बताऊंगा कभी
क्यों अभी क्यों नहीं?
अभी बताने जाऊंगा तो तेरे हाथों से खाना नहीं खा पाउंगा
बातें बना रहा है
बातें नहीं यादें बना रहा हूं जो कभी ना भूल पाऊं
वाह बड़ा शायर बन रहा है
तू शायरी बन जा,तो मैं शायर बन जाऊंगा।
वह सोचने लगी तभी इतने में स्कूल की बेल बज गई सभी अपने अपने क्लासरूम में टीचर आए पढ़ते गए पीरियड बदलते गए ऐसे ही दिन बीते बीते कैसे एक महीना निकल गया पता ही नहीं चला? पर वक्त के साथ-साथ दोस्ती भी बढ़ गई। इतना पता चल गया।
तनिशा स्कूल में मुझे छोड़कर दूसरे लड़कों से बात नहीं करती। लड़कियां दोस्त भी दो या तीन ही थी जिस में से आरोही उसकी खास फ्रेंड थी। जिसके साथ वह स्कूल आती व उसी के साथ घर जाती। दोनों का घर एक ही गांव में था। घर उनके दूर-दूर थे पर वह दोनों दिल के बहुत करीब थी।
सौभाग्य से मुझे तनिशा के साथ बैठने का मौका मिला इस वजह से बेचारी आरोही को पीछे की बेंच पर बैठना पड़ता था। घर पर तनिशा की यादगार के बतौर पर उसकी कॉपी होमवर्क के बहाने ले जाया करता एक दिन उसकी मैथ और अंग्रेजी की कॉपी अपने घर ले गया।
अगले दिन जब स्कूल आया तनिशा नहीं आई।
आरोही आज तनीषा स्कूल क्यों नहीं आई?
पता नहीं सुबह मैं नहीं देखा उसे
पूछना तो था ना उससे
लेट होने के चक्कर में चली आई
(तनिशा की खाली सीट धीरे-धीरे मेरे मन को खाली कर रही थी बड़ी मुश्किल से लंच ब्रेक तक का टाइम गुजरा)
और सर दर्द के बहाने घर आ गया।
बेटा आज इतना जल्दी कैसे आ गया?
कुछ नहीं सर दर्द कर रहा था।
चल बैग रख, आराम कर... मैं चाय बना कर लाती हूं।
बैग रख कर बेड पर आराम करने लगा।
पर इस आराम को भी आराम कहां जब तक उसका चेहरा ना देख ले
मां चाय बना कर ले आई... ले बेटा पी ले।
मैं सर पर बॉम लगा देता हूं।
माँ सर पर बाम लगाने लगी
(काश यह कह पाता माँ दिल के दर्द का बॉम हो तो दिल पे भी लगा दे। थोड़ा इसे आराम मिले)
अब सो जा थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा।
तनिशा कहां होगी? क्या कर रही होगी? कहीं बाहर तो नहीं गई? क्या उसकी तबीयत खराब तो नहीं हो गई? मन में ऐसे ही हजारों सवाल आ रहे थे जो दिल को बेचैन कर रहे थे पर इन सवालों के जवाब भी तो तनिशा के पास थे।
2 घंटे नींद का नाटक करने के बाद उठ गया।
मां बोली कैसा है अब?
ठीक हूं आया मैं।
कहां जा रहा है?
यही बाहर घूमने।
ठीक जल्दी आना।
टहलते टहलते गांव के चौराहे पर आ गया।
सोचा अकेलापन यहाँ दूर हो जाएगा शाम का वक्त था। कुछ लोग चबूतरे के पास बैठे बात कर रहे थे.... कोई काम से लौट कर घर जा रहा था.... सब्जी वाला आवाज लगा लगाकर सब्जी बेच रहा था... कुछ महिलाएं अपनी भैंसे लेकर जा रही थी...बच्चे खेल रहे थे.... पनिहारी पानी लेकर आ रही थी। सब.. कुछ ना कुछ कर रहे थे। मैं तनिशा के गांव का रास्ता ताक रहा था। शायद उस रास्ते पर वह नजर आ जाए। नजर जहां तक जा सकती थी वहां तक दौड़ाई। पर कुछ नजर न आया।
तभी पास में ही चाय की टपरी थी वहां गया। कटिंग चाय पी। और घर लौट गया।
उदासी शाम के बाद रात की तरह बढ़ती गई। पर मुझे इंतजार था सुबह का... जैसे तैसे घर पहुंचा मां ने खाना खिलाया।
फिर बेमन से सो गया।
Part 4 हाफ बाईट
सुबह उठा इस उम्मीद के साथ कि शायद आज तनिशा आएगी। पर स्कूल पहुंचा तो पता चला आज भी वह नहीं आई।
आरोही से पूछा तो पता चला उसकी तबीयत ठीक नहीं है। यह सुनकर मैं... जैसे बीमार सा हो गया।
आज फिर नया बहाना.. पेट दर्द का करके घर गया।
जैसे ही घर पहुंचा मां ने पूछा- बेटा आज फिर से घर कैसे आ गया? तबीयत ठीक नहीं है क्या?
हां मां।
रेस्ट कर चाय लाती हूं.. फिर बाम लगा देता हूं।
चाय पिला दे..बॉम से ठीक नहीं होगा। दवाई ले आता हूं।
मां ने चाय पिलाई और कहा दवाई शाम को पापा के साथ मंगवा दूंगी।
नहीं मम्मी अभी ले आता हूं शाम तक ठीक हो जाएगा।
ठीक है ले आप पर दवाई लेने पास के गांव जाना पड़ेगा।
( इसी का इंतजार था मुझे मेरे गांव में कोई दवाई की दुकान नहीं थी.. एक छोटी सी दुकान तनिशा के गांव में थी। )
मैं साइकिल पर चला जाऊंगा
ठीक है ध्यान से जाना और जल्दी आना
घर के अंदर गया चुपके से तनिशा की कॉपी लेकर थैली में डालकर मां से छुपाते हुए बाहर आ गया।
घर के बाहर मेरी साइकिल खड़ी थी जिसे मैं "सफर का साथी" कहता था।
जैसे ही साइकिल हाथ में ली.. ऐसा लगा जैसे वह पूछ रही हो कहां जाना है?
पर कैसे बताऊं कि उसे हमसफर से मिलने जाना है? जिसके लिए इस मुसाफिर ने कोई सफर नहीं किया।
क्या पता बताउ और नाराज होकर "सफर का साथी" चले ही ना मेरे साथ
साइकिल पर सवार होकर निकल पड़ा प्यार की उस राह पर जिसकी मंजिल का पता नहीं।
दोपहर का वक्त था धूप पड़ रही थी। हवाएं भी चल रही थी आज हवाओं में ताजगी की थी। उनमे खुशबू थी मानो किसी बाग में गुलाबों से मिलकर आ रही हो।
रास्ता नया नहीं था। पर आज एहसास नया था।
आज कुछ तो नई बात थी जो मुझे बस उसकी और खींचती चली जा रही थी।
20 मिनट बाद में जैसे ही उसके गांव में पहुंचा। चौराहे पर लोग अपने कामों में व्यस्त थे। मेरी नजर दवाई की दुकान के पास किराना स्टोर पर पड़ी। और किराने की दुकान में चला गया।
अंकल जी चॉकलेट है
हां है
कितनी वाली दु 5, 10 या 20 वाली
20 वाली दे दो एक
यह ले बेटा
(उस महंगी मोहब्बत के लिए पहली बार इतनी महंगी चॉकलेट ली... नहीं तो 5 रुपये से ज्यादा वाली चॉकलेट का स्वाद भी नहीं चखा था)
तभी याद आया तनिशा के घर का पता तो मालूम नहीं।
पर किससे पूछूं... कैसे पूछूं... तनिशा को कौन जानता होगा यहां?
अंकल जी वकील साहब कहां रहते हैं?
कौन वकील साहब?
वह जो अभी 2 साल पहले यहां आकर रहने लगे।
कौन योगेश अग्रवाल?
हां वही।
वह तो बेटा यहां से सीधा जो के आगे जैन मंदिर के पास ही एक गली है उसमे तीसरा घर.. घर के बाहर नाम लिखा हुआ है।
क्यों कुछ काम है उनसे?
उनका यह सवाल बुरा लगा मुझे।
(गांव वालों को पंचायत बहुत रहती हैं )
हां उनकी बेटी जो मेरे साथ पढ़ती हैं उसको बुक्स लौटनी है। यह कहकर मैं वहां से निकल पड़ा पर एक डर था जो मेरे साथ-साथ चल पड़ा।
कैसे उसके घर जाऊंगा? कैसा वहां माहौल होगा.. तनिशा व उसके पापा गुस्सा तो नहीं करेंगे वगैरा-वगैरा
जब प्यार में होते हो तो वह हिम्मत आ ही जाती हैं पता नहीं कैसे?
तनिशा के घर के पास पहुंचा तो देखा उसके घर के बाहर औरत बैठी है शायद तनिशा की मां होगी।
आंटी तनिशा है?
हां है.. पर तुम कौन?
आंटी में तनिशा का फ्रेंड.. उसके साथ ही पढ़ता हूं.. यहां आया था कुछ काम से.. सोचा तनिशा को बुक्स दे दूं जो मेरे पास थी।
आंटी ने अंदर आवाज लगाई... तनिशा कोई आया है।
एक कमरे से आवाज आई... अंदर भेज दे मम्मी।
आंटी बोली.. बेटा अंदर जा।
अंदर कोई नहीं था शायद फिर उसे कमरे की और बड़ा जिसमें से तनिशा ने आवाज लगाई।
तनिशा बेड पर सो रही थी उसका मुंह दरवाजे से ऑपोजिट था।
मैंने कहा "तनिशा"
तनिशा ने आवाज पहचान ली और एकदम उठ गई।
अरे तुम तनिष्क यहां कैसे?
क्यों नहीं आ सकता क्या?
आ सकते हो तुम्हारा ही घर समझो।
(उस पगली को कैसे समझाऊं कि मुझे उसके घर में नहीं उसके दिल में जगह चाहिए)
बस ऐसे ही कुछ काम से आया था सोचा कि तुम्हें बुक्स लौटा दूं अच्छा यह बताओ... तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है?
हां 2 दिन से बुखार है... अभी भी है... चेक करो।
यह कहकर उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने सिर पर और फिर हाथ पर रखा।
देखा.. बुखार है ना
हां है.. चलो रेस्ट करो
सुबह से रेस्ट ही कर रही हूं अभी तुम आ गए थोड़ी देर बातें करूंगी।
(मेरे मन में... मन बोला मोहब्बत की बातें कभी खत्म नहीं होगी पगली)
क्या हुआ? बातों बातों में तुम्हें चाय पानी का पूछना तो भूल ही गई।
तुम्हें देख लिया... जैसे सब पी लिया
देवदास देखकर आए हो... यह कहकर वह हँस दी
(हमेशा उसका हंसता चेहरा ही याद रहता है और दिल को सुकून देता है)
मम्मी चाय बनाना।
ठीक बनाती हूं.. उठकर मम्मी चाय बनाने चली गई।
तुम सच में काम से आए थे
नहीं तुम्हें देखने आया था।
अब बोला सच
क्यों देखना था?
सच कहूं तो स्कूल में मन नहीं लगा तेरे बिना और तेरी तबीयत का सुना तो चला आया।
वह चुप।
(शायद उसे मेरे आने की वजह के साथ मेरे प्यार का भी पता चल गया)
देख तेरे लिए क्या लाया? ...जब से चॉकलेट निकलते हुए बोला।
तभी उसकी मां चाय लेकर आ गई मैंने चॉकलेट छुपा दी।
ले बेटा चाय पी... वैसे क्या नाम है?
आंटी तनिष्क
कहां रहते हो?
आंटी पास के गांव मेड़तियान में
अच्छा.. वहां से आए हो
हां
ठीक... आंटी चाय देकर चली गई।
तभी तनिशा बोली - क्या लाए हो बताओ?
मैंने चॉकलेट निकाल कर उसके हाथ में रख दी।
पागल यह क्यों लाया?
तुझे चॉकलेट बहुत पसंद है न
(तनिशा के स्कूल बैग में हमेशा दो-तीन चॉकलेट रहा करती थी सोचा दो दिन से स्कूल नहीं आई.. इसलिए तेरे बैग में खत्म हो गई होगी)
तनिशा ने चॉकलेट खोलकर - ले.. खा
तेरे लिए लाया हूं मेरे लिए नहीं
खा... न
तेरे लिए लाई है इसलिए पहले तू खा
यह कहकर मैंने उसे चॉकलेट खिलाई वह एक बाइट लेकर मुझे खिलाते हुए.. ले अब तो खा... रुक इस तरफ जूठा है दूसरी तरफ से खिलाती हूं।
जूठा खाने से प्यार बढ़ता है पागल
और कितना प्यार बढाना है
मैं चुप
(काश कह पाता... जो कभी खत्म ना हो)
और उसने बाइट ली वाली साइड से मुझे चॉकलेट खिलाई। (जुबान का उठी बहुत मीठा है पर इतने में मन ने कहा मोहब्बत इससे मीठी है)
इतने में वह बोली यार मैं तुझे अपना मोबाइल दिखाना ही भूल गई....उठकर उसने अलमारी से मोबाइल निकाला।
यह देख।
अभी तो बॉक्स भी नहीं खोला
नहीं यार 12th के बाद
क्यों?
बोर्ड में टॉप जो करना है
हां सही है... पर सबसे पहले अपना नंबर मुझे देना
फोन तो है नहीं तेरे पास नंबर का क्या करेगा?
अपने दिल में सेव कर लूंगा।
शायर साहब नंबर बाद में सेव कर लेना... पहले पढ़ाई करना। ऐसा ना हो फिर से.........बोलते बोलते रुक गई
तू साथ है तो समझ ले मैंने भी टॉप कर दिया।
अच्छी बात है तब तो
(वहां बैठे-बैठे अपनी दोस्ती में प्यार की बातों का इत्र छिड़क दिया जिससे तनिशा भी महक रही थी)
अच्छा बता.. कल स्कूल आएगी कि नहीं
ठीक हुआ तो जरूर
ठीक है अब चलता हूं
रुक जा यहीं
कभी तू रुकी है मेरे कहने से
तूने कब कहा रुकने को?
तो बोलूंगा तो रुक जाएगी
एक बार बोलकर तो देख ना रुकू तो कहना
प्रॉमिस
प्रॉमिस
वक्त आएगा तो कहूंगा "रुक जा" रुक गई तब मानूंगा तूने अपना प्रॉमिस निभाया
ठीक है जाता हूं नहीं तो मम्मी डाँटेगी बहुत देर हो गई आए हुए
ठीक है आराम से जाना... बाय
उसके घर से निकलते वक्त सब उसे दे कर आया था। उसकी बुक, चॉकलेट, अपनी चिंता उसके बदले में साथ लाया था सुकून।
जैसे ही घर पहुंचा मम्मी मेरी राह देख रही थी
बड़ी देर कर दी आने में
हां मम्मी.. दोस्त मिल गए थे... बातें करने लग गया
ला दवाई दे दे....तुझे दे देती हूं
अरे वह तो वही ले ली.. अब ठीक है
ठीक है आराम कर ले थक गया होगा साइकिल चलाते-चलाते
शाम का वक्त था मम्मी खाना बनाने में बिजी हो गई और मैं टीवी देखने में
रात के 8:00 बज गए पापा आ चुके थे
मैं टीवी बंद करके मम्मी के पास चला गया। मम्मी ने खाना डाला मैं खाना खाकर सोने के लिए चला गया।
मम्मी पापा के कमरे के पास ही मेरा छोटा सा कमरा था। जिसमें मेरे पढ़ाई की सामग्री व मेरे सामान के अलावा मेरा सिंगल बेड था।
बिस्तर पर मैं तो आ गया था पर नींद नहीं आई।
लेटे-लेटे तनिशा के बारे में सोचने लगा वो पहली मुलाकात ही क्या जो याद ना आए
आज इतने करीब से बड़ी फुर्सत से तनिशा को देखा था। उसका गोल-गोल चेहरा, गुलाबी होंठ, काली आंखें, होठों के ऊपर तिल, चेहरे पर आती वह जुल्फे, कमर तक आते उसके बाल, मुलायम से वह हाथ,और मेरे कान तक आती उसकी हाइट
बताने को बहुत कुछ है... पर नजर ना लग जाए इस डर से नहीं बता पा रहा हूं।
तभी याद आया क्लास की टॉपर को टॉप करना है
पर तेरा क्या तनिष्क? कह तो आया टॉप करूंगा... टॉप कर पाएगा?....टॉप करके तनिशा को पीछे छोड़ देगा... नहीं उसे पीछे नहीं छोडूंगा..... पीछे नहीं छोड़ा तो टॉप कैसे होगा? यह सारे सवाल मन को उलझा रहे थे।
तभी डिसाइड किया जो भी हो उससे कह दिया तो टॉप करके दिखाना पड़ेगा।
तभी उठ खड़ा हुआ लाइट जलाई और पढ़ने बैठ गया।
कमरे से मां ने आवाज दी... सो जा बेटा वैसे तेरी तबीयत ठीक नहीं है।
नींद नहीं आ रही है नींद आएगी तो सो जाऊंगा
2 घंटे पढ़ाई करने के बाद सो गया।
हर सुबह अपने साथ नयी आशा की किरण लेकर आती हैं। सुबह इसी आशा के साथ उठकर फिर से तैयार हुआ... कि शायद आज तो तनिशा स्कूल आएगी।
मम्मी ने टिफिन तैयार किया। और मैं खुद को
फिर बैग लेकर स्कूल निकल गया
आज तनिशा पहले ही आ चुकी थी अपनी बेंच पर बैठे-बैठे शायद मेरा ही इंतजार कर रही थी।
मुझे देखते ही खुशी से...... "आ गए आप"
एक पल ऐसा लगा जैसे जीवन संगिनी अपने प्रियवर को बुला रही हो।
"जी हां"
Part 5 सेकंड रैंक
प्रार्थना सभा की बेल बजी सभी प्रार्थना सभा में चले गए। पहली क्लास हिंदी की थी.. पर आज विधि मेम नहीं आई। इसीलिए सभी क्लास में मस्ती कर रहे थे। तभी लास्ट बेंच के दीपक ने आगे की तरफ चॉक फेंकी जो तनिशा को लगी। दीपक क्लास के बदमाश लड़कों में से एक जो अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। तनिशा उठ खड़ी हुई
किसने मारी चॉक।
मैंने भी पीछे देखा दीपक हंस रहा था शक यकीन में बदल गया।
दिमाग खराब है क्या तेरा? (मैंने कहा)
लो फैलियर साहब आपको बुरा लग गया (दीपक बोला)
इतने में मैथ्स के टीचर आ गए पढ़ने को झगड़ा आगे ना बढ़ पाया।
तनिशा के हाव भाव से लगा कि उसे चॉक का इतना बुरा नहीं लगा जितना दीपक के फैलियर कहने से लगा। क्लासेस खत्म हुई। लंच टाइम हो गया। मैं और तनिशा लंच करने लगे।
क्या हुआ तनिशा? कुछ नहीं।
तो यूं मुंह सुझाये क्यों बैठी हो?
उस पागल दीपक ने तुझे फैलियर कैसे कह दिया?
छोड़ जाने दे।
जाने कैसे दु उसको तो जवाब देना पड़ेगा?
छोड़ ना यार वक्त पर उसको भी जवाब मिल जाएगा।
मैं इन झगड़ों में नहीं पडना चाहता था मुझे तो बस टॉप करना था इसलिए अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रहा था।
मैं तनिशा के साथ बस पढ़ाई पर ध्यान दे रहा था। मेरी मैथ्स अच्छी थी और तनिशा की इंग्लिश। इसलिए एक दूसरे की हेल्प भी कर रहे थे। कुछ समझने में कुछ समझाने में।
वैसे अच्छी संगत का असर भी अच्छा होता है यह टॉपर तनिशा के पास बैठ के पता चला। तनिशा के साथ-साथ अब पढ़ाई में भी मन लग चुका था इसमें कब दिन महीने गुजर गए पता ही ना चला?
अर्द्धवार्षिक परीक्षा की आ गई।
अबकी बार पढ़ाई की थी, इसलिए परीक्षा के लिए अलग ही उत्साह था मन में।
परीक्षा में तनिशा मेरे पीछे की सीट पर बैठा करती थी। इसलिए आते ही तनिशा के मुंह से बेस्ट ऑफ लक सुनने को मिलता, चाहे परीक्षा कक्ष में कितनी ही लेट फास्ट आए।
मेरे लिए तो मेरा भाग्य मेरे पीछे ही बैठा था। इसलिए सब बेस्ट होना स्वाभाविक था। परीक्षा खत्म हुई।
और टीचर ने अर्धवार्षिक परिणाम सुनाया। जिसमें तनिशा कक्षा में टॉप पर चल रही थी। मेरी कक्षा में सेकंड रैंक थी। टीचर व पूरी कक्षा के सामने मेरी इज्जत बढ़ गई।
तनिशा बोली - आ गए मेरे पीछे-पीछे... वाह सेकंड रैंक
तेरे पीछे-पीछे तो खुशी से आऊंगा
पर मन में वह खुशी नहीं थी क्योंकि वादा अधूरा रह रहा था टॉप करने का
प्रोग्रेस कार्ड लेकर घर पहुंचा।
मां ने पूछा - क्या रिजल्ट आया?
कक्षा में सेकंड आया हूं।
(दुनिया में ऐसी कोई माँ नहीं होगी जो बेटे की तरक्की से खुश ना हो)
मेरी भोली मां... सुधा.. अमृत के समान... उसकी आंखें चमक उठी फुले नहीं समा रही थी
शाम को पापा लौटे।
पापा चश्मा लगाकर मेरा प्रोग्रेस कार्ड देख रहे थे। यह वही चश्मा है, जो बेटे की नाकामयाबी पर गिर कर टूट गया था।
मां किचन में खाना बना रही थी, उसके हाथ में वही बेलन था जो कभी मेरी असफलता में मेरे पीछे मारने को दौड़ा था।
पर आज वह मुझे खिलाने के लिए रसोई में कुछ बढ़िया बना रहा था।
मां ने खाना बना लिया। खाना खाकर। हम सब सोने को अपने अपने कमरे में चले गए।
Part 6 दिल की बात
सोते-सोते सोच रहा था, तस्वीर वही है पर एक साल में कितना कुछ बदल गया।
प्रोग्रेस कार्ड... मां... पापा... चश्मा.. बेलन...
1 साल पहले यह कितनी बुरी तस्वीर थी, पर आज वह ही तस्वीर कितनी बदल गई।
अगले दिन जब स्कूल पहुंचा तो तनिशा में एक दोस्त के साथ एक प्रतिद्वंदी भी नजर आ रहा था।
जिसके प्रेम में सब कुछ हार कर कक्षा 12th की परीक्षा में जीतना था।
(जैसे इंतजार में वक्त नहीं कटता वैसे ही जब हम प्यार में होते हैं तब वक्त नहीं ठहरता। वक्त... वक्त की बात है)
आधा साल बीत गया.. कुछ महीने और... फिर....
तभी तनिशा - बोली क्या सोच रहा है?
कुछ नहीं
कुछ तो सोच रहा था
12th खत्म होना को आ गया इसलिए थोड़ा सा डर लग रहा है।
इसमें डरने की क्या बात है? तनिशा कुछ समझ नहीं पाई। पढ़ाई कर टॉप करना है
टीचर क्लासरूम में आ गए पढाने लगे फिर एक क्लास के बाद दूसरी क्लास लगती गई।
स्कूल की छुट्टी हो गई तनिशा ने बाय कहा और अपने घर की तरफ चली।
मैं भी निराशा के साथ घर लौटा।
मैंने जिस वक्त के लिए 1 साल का इंतजार किया... वह वक्त इतना जल्दी बीत जाएगा। समझ नहीं आ रहा था।
मैं तनिशा से दूर नहीं जाना चाहता था।
कक्षा 12 के अलावा मुझे उसके करीब भी कोई नहीं रख सकता था।
(वर्तमान से ज्यादा भविष्य की चिंता इंसान को परेशान कर देती हैं ) मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा था।
तनिशा से वह सब बातें नहीं कह पाया था। जिसे कहने के लिए मैं रुका था।
मैं अपनी ही चिंता में खोया रहा। बाहर क्या हो रहा है कुछ पता नहीं?
सुबह यह सोचकर फिर से स्कूल निकल पड़ा कि मुझे सिलेबस के साथ वह सब बातें भी कंप्लीट करनी है जो तनिशा को कहनी है। क्लास में तनिशा को देख रहा था। तनिशा - क्या देख रहे हो?
तेरा चेहरा
क्यों?
कोई चेहरा जिंदगी कैसे बन जाता है?
मतलब समझी नहीं
नादान... पगली... समझ जाएगी एक दिन।
तभी विवेक सर आ गए जो हमें मैथ्स पढ़ते थे। मेरे फेवरेट टीचर भी थे। अब कोई भी क्लास खाली नहीं जाती। टीचर अपने सिलेबस कंप्लीट करवाने में लगे थे।
पर इस बीच में मेरे प्यार के इजहार का सिलेबस पूरा नहीं कर पा रहा था। जो मुझे हर हाल में पूरा करना था।
पढ़ते... सोचते जनवरी भी बीत गया।
एग्जाम डेट भी आ गई, 1 मार्च को बोर्ड के एग्जाम थे।
टीचर रिवीजन करने में लगे थे। 14 फरवरी को फेयरवेल फंक्शन (विदाई समारोह) रखा था। दिन भी ऐसे दौड़े जा रहे थे जैसे उन्हें कोई रेस जीतनी हो। दिनों की दौड़ मेरे दिल में चिंता व डर का घर कर रहे थे।
पर मुझे वक्त को थोड़े वक्त के लिए रोकना था। और उस वक्त तनिशा को दिल की बात कहनी थी।
बड़ी हिम्मत जुटा एक दिन घर से निकला कि आज तनिशा को कह दूंगा आई लव यू चाहे कुछ भी हो जाए।
पर स्कूल में तो सब होंगे... तनिशा को अकेले में कहां मिलूंगा... ऐसा कोई वक्त या जगह नहीं जहां हम दोनों मिल सके?
आश और विश्वास डगमगाने लगा। दिमाग को काम पर लगा दिया कि कोई ना कोई उपाय ढूंढ कर लाए।
कहते हैं ना कि जहां समस्या है समाधान भी वही हैं मुझे समाधान मिल गया। और कदम फटाफट चल पड़े स्कूल की और स्कूल पहुंचा।
तनिशा अपने बेंच पर बैठी बैठी पढ़ रही थी।
गुड मॉर्निंग तनिशा
गुड मॉर्निंग
तनिशा आज प्रार्थना सभा में मत जाना
क्यों?
अरे इंग्लिश ग्रामर के कुछ टॉपिक के बारे में समझना था।
बाद में समझ लेना न
बाद में समय कब मिलेगा हमारी एक भी क्लास फ्री नहीं रहती
फिर तुम अपने घर.. में अपने घर... वैसे भी अब बोर्ड क्लास के लिए प्रार्थना सभा में जाना अनिवार्य नहीं है।
ठीक है
तभी प्रार्थना सभा की बेल बजी सभी प्रार्थना सभा में चले गए।
बता क्या समझना है?
कुछ नहीं
मैं तनिशा की आंखों में देख रहा था
ऐसे मत देख पागल.... पागलपंती करने के लिए रोका मुझे। दिल कह रहा था रहते उसे अब आई लव यू पर हिम्मत ने हार मान ली।
बची कुची हिम्मत के साथ कहा।
मुझे तुम बहुत पसंद हो
नापसंद कब थी?.... हंस पड़ी
पागल सीरियस कह रहा हूं
मैंने भी सीरियस ही तो कहा
मजाक उसकी बातों में था.. पर उसकी आंखें कुछ और बता रही थी।
क्या मैं तुम्हें पसंद हूं?
वह कुछ ना बोली आंखें बंद करके हल्के से मुस्कुराई।
(जैसे भगवान का शुक्रिया कर रही हो दुआ कबूल होने के बाद)
उसने मेरे सवाल का जवाब तो नहीं दिया पर मेरे दिल को इतना यकीन दिला दिया। की जो मैं करना चाहता हूं वह समझ गई
उसकी हल्की मुस्कुराहट ने जैसे मेरी सभी बातों में हामीं भर दी हो।
शर्म से उसकी आंखें अब भी नीची ही थी। शायद वह अपनी आंखों से ली मेरी तस्वीर को दिल में सहेज कर रख रही हो। तब प्रार्थना सभा समाप्त हो गई सभी स्टूडेंट क्लासरूम में आ गए।
मैं और तनिशा अपनी-अपनी बुक लेकर पढ़ने बैठ गए ताकि कोई हमें शक की नजर से ना देखें।
आरोही - तनिशा प्रार्थना सभा में नहीं आई
तनिशा - नहीं यार
क्यों?
तनिष्क को इंग्लिश में कोई टॉपिक समझाना था
तनिशा मंद मंद मुस्कुरा रही थी।
तभी मैं... तनिशा उसका आंसर नहीं मिला मुझे
बुक में ढूंढ मिल जाएगा.....हंसते हुए तनिशा ने कहा
अगर किसी बुक में मिलता तो तुझे नहीं पूछता
ठीक है मैं बता दूंगी... बाद में
पर जल्दी बताना
हम हंसी मजाक में दिल की बात कर रहे थे। आरोही ने इतना कुछ ध्यान दिया नहीं। आज दिल का बोझ कुछ हल्का हो गया था।
आधी अधूरी ही सही पर तनिशा से दिल की बात कह दी थी। आज वह भी मन ही मन खुश थी पर बया नहीं करना चाहती थी।
To continue part 7.......
निष्कर्ष
दोस्तों मेरे द्वारा लिखी फेलियर की शुरुआत कैसे लगी आपको मुझे कमेंट बॉक्स में जरूर बताना ताकि मुझे मोटिवेशनल मिले और आपको एक बेहतरीन कहानी पढ़ने को मिले। इस कहानी में अगर आपका कोई सुझाव या राय तो तो भी बताना क्योंकि यह कहानी एक ऐसे ऐसे रास्ते से गुजर रही है जिसे मंजिल का पता नही.... क्या पता आपकी राय या सलाह उसे खूबसूरत मंजिल तक ले जाये..... मिलते है फिर फेलियर part 7 में....