मासूम की माँ रूठ गयी - Masum Ki Maa Ruth Gyi
हैल्लो दोस्तों फिर से आप सभी का मेरे इस ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत और अभिनंदन। आप सभी ने इस ब्लॉग को बहुत प्यार दिया है इसलिए मैं आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया करता हु। दोस्तों आज में आपके लिए एक ऐसी लेकर आया हु कहने को वो कविता हो सकती है पर असल मे वो मन के भाव है। जिसे कविता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कविता का शीर्षक है मासूम की माँ रूठ गयी जिसे तरुण कुमार ने लिखा है तरुण कुमार यानी कि मैं। मैं राजस्थान के पाली जिले के एक छोटे से गाव से संबंध रखता हूं। अक्सर हम देखते है या सुनते है कि बच्चे के जन्म लेते ही उसकी माँ दुनिया को छोड़ के चली जाती है। यह दृश्य पत्थर दिल को भी द्रवित करने वाला होता है। क्योंकि "माँ के बिना दुनिया और खुशियों की कभी कल्पना नही जा सकती है।"
"एक माँ का आँचल होता है जो हमे धरती पर स्वर्ग के सुख का अहसास करता है।" इस कविता में मैने उस बिन माँ के बच्चे के सवालों को प्रस्तुत किया है। जो आपको भी सोचने पर मजबूर करेंगे। कविता पर अपनी राय मुझे जरूर दे।
मासूम की माँ रूठ गयी
आज अश्रु की धारा, झरना बनकर छुट गयी।
जब एक मासूम की माँ उससे रुठ गयी।।
तू तो ममतामयी मूरत है
फिर कैसे इतनी निर्दयी हो गयी।
अपनी संतान का भी नही सोचा
क्या तेरी संतान भी, तेरे लिए पराई हो गयी।।
खाना लेकर इसके पीछे भागेगा कौन?
देर रात तक इसके लिए जागेगा कौन?
बीमारी में इसका ख्याल रखेगा कौन?
दुनिया की नजरों से बचा कर, इसकी नजर उतरेगा कौन?
एक बार आँख तो खोल
इन नन्ही आँखों को कौन पोछेगा।
तू तो जानती है, दुनिया बदुआ ओ का नाम है
इनके सर फिर दुआ ओ का हाथ कौन फिरेगा।।
सब खुद का पेट भरना जानते है
इनका पेट कौन भरेगा।
कब लगती है इसको भूख
तेरे सिवा, इसकी भूख का अहसास कौन करेगा।।
तू तो सुकून से सो गयी
नींद आने पे इसे सुलयेगा कौन।
नींद जब रूठी होगी इससे
उस नींद को लोरी सुनाएगा कौन।।
तेरे बिन यह कैसे रह पायेगा
अपने दर्द किससे कहने जायेगा।
दर्द जब इसे दर्द देने आएगा
तेरे सिवा इसके लिए उस दर्द लड़ने कौन आएगा।।
नासमझ है, इसलिए समझ नही पाया
तू मौत के आंचल में सोयी है, यह जान न पाया।
जब पता चलेगा, तू भी इसे छोड़ कर चली गयी
तब क्या दशा होगी इसकी, तुझसे भी नही जायेगी देखी।।
हर पल आँखों से इसके नीर बहेगा
कहा गयी तू माँ,,,,बस एक बात ही कहेगा।
जाना ही था तो मुझे जमी पर न लाया होता
जब देना ही नही था मुझे प्यार, तो जन्म लेते ही मार दिया होता।।
निष्कर्ष
आशा करता हु की आप को मेरी लिखी यह कविता मासूम की माँ रूठ गयी पसन्द आयी होगी । इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ शेयर जरूर करे। और हा अपनी राग और सुझाव मुझे कंमेंट बॉक्स में जरूर दे। एक बार फिर से आप सभी ने जो इस ब्लॉग को प्यार दिया उसके लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया दोस्तों। धन्यवाद