बातें मुझे खानदानी करनी पड़ी - Kanha Kamboj
हैल्लो दोस्तों आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है ।आप अगर कान्हा कम्बोज के फैन है उनकी शायरियों को पसंद करते हो तो आप सही जगह आये हो । आज में आपके लिए लेकर आया हु कान्हा कम्बोज की एक बेहतरीन कविता बातें मुझे खानदानी करनी पड़ी जो आपको बेहद पसन्द आएगी।
बातें मुझे खानदानी करनी पड़ी - Kanha Kamboj
अपनी हकीकत में ये एक कहानी करनी पड़ी।
उसके जैसी मुझे अपनी जुबानी करनी पड़ी।।
कर तो सकता था बातें इधर उधर की बहुत।
मगर कुछ लोगों में बातें मुझे खानदानी करनी पड़ी।।
अपनी आँखों से देखा था मंजर बेवफाई का।
गैर से सुना तो फिजूल हैरानी करनी पड़ी।।
मेरे ज़हन से निकला ही नहीं वो शख्स।
नये महबूब से भी बातें पुरानी करनी पड़ी।।
उससे पहले मोहब्बत रूह तलक की मैंने।
फिर हरकतें मुझे अपनी जिस्मानी करनी पड़ी।।
ताश की गड्डी हाथ में ले कान्हा को जोकर समझती रही।
फिर पत्ते बदल मुझे बेईमानी करनी पड़ी।।
जैसे चलाता हूं वैसे नहीं चलता।
कैसे बताऊं यार ऐसे नहीं चलता।।
खुद को मेरा साया बताता है।
फिर क्यूं तू मेरे जैसे नहीं चलता।।
तेरे इश्क में हूं बेबस इतना मैं।
जवान बेटे पर बाप का हाथ जैसे नहीं चलता।।
दर्द, दिमाग, वार, ये शायद जंग है।
मेरी जां मोहब्बत में तो ऐसे नहीं चलता।।
बस यही बातें हैं इस पूरी गजल में कान्हा।
कभी ऐसे नहीं चलता कभी वैसे नहीं चलता।
निष्कर्ष
आशा करता हु की आप सभी की कान्हा कांबोज की कविता बातें मुझे खानदानी करनी पड़ी जो आपको बेहद पसन्द आएगी। अपनी राय मुझे कंमेंट बॉक्स में जरूर दे। और आप सभी के प्यार के लिये बहुत बहुत शुक्रिया दोस्तों...