मेरी माँ बूढ़ी होती जा रही - तरुण कुमार

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हेल्लो दोस्तों आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है। दोस्तों आज में माँ पर कविता लेकर आया हु जिसका शीर्षक है "मेरी माँ बूढ़ी होती जा रही" है जो एक माँ पर इमोशनल कविता है जिसे तरुण कुमार यानी कि मैंने लिखा है उम्मीद करता हु आपको पसंद आये। माँ एक शब्द नही अर्थ है और माँ के बिना सब व्यर्थ है। माँ सब साथ होती है तो जिंदगी जमी पर स्वर्ग के समान होती है। क्योंकि माँ के होते हमे किसी चीज़ की कमी महसूस नही होती। चाहे सुख में चाहे दुख में। क्योंकि माँ हमारी सभी कमी को पूरा कर देती है। हमारे मुह से शब्द निकलने से पहले ही वो चीज़ हमारे सामने हाजिर हो जाती है जिसकी हमे जरूरत होती है। बिन कहे समझने की शक्ति भगवान ने सिर्फ माँ को दी है। प्रकृति का नियम है कि बचपन जवानी बुढ़ापा पर जब माँ बूढ़ी होती है तो हमें उसकी कमी महसूस होती है। एक अधूरापन सा आ जाता है जिंदगी में । माँ जब बूढ़ी होती है तब हमें अपनी कमियों और माँ के महत्व का पता चलता है इसी पर यह कविता लिखी है ।


मेरी माँ बूढ़ी होती जा रही


Emotional-Maa-Par-Kavita

मुझे हर रोज एक चिंता खाये जा रही है

मेरी माँ, बूढ़ी होती जा रही है

चिंता यह नही की, उसकी सेवा कैसा करूँगा

चिंता तो यह है, फिर में उसके आँचल में कैसे सोऊंगा


फिर कौन, मुझे ऐसा लाड लड़ायेगी

फिर कौन, मुझे अपनी गोद मे सुलाएगी

फिर कौन, मेरे बालो में अपना हाथ फिरेगी

फिर कौन, मुझे बचपन वाली लोरिया सुनाएगी


फिर कौन, थके हारे को देर तक सोने देगी

फिर कौन, देर तक सोने पर डाँट फटकार देगी

माँ तू ही तो है, जो मेरा हर दर्द जान जाएगी

 माँ तू ही तो मेरे हर दर्द के लिए मरहम लाएगी


माँ फिर मेरी हर चीजो का ख्याल कौन रखेगा?

माँ, फिर मेरे उलझे सवालो का जवाब कौन रखेगा

गलत राहो पर जाने से कौन रोकेगा

माँ कुछ गलत कर दु तो कौन टोकेगा


माँ मेरी पसंद को अपनी पसंद कौन मानेगा

माँ फिर तुझसे बेहतर मुझे कौन जानेगा

माँ फिर मेरी पसंद का खाना कौन बनाएगी

माँ तेरे बिना मुझे अपने हाथों से खाना कौन खिलायेगी


माँ में बड़ा हो गया हूं पर शर्ट का बटन बन्द करना नही आता

सच कहूं तो माँ मुझे तेरे बिना जीना नही आता

माँ तू तो बूढ़ी होकर भी बेसाखी से चल जाएगी

माँ तू तो बेसाखी है मेरे जिंदगी की, और तेरे बिना यह जिंदगी चल नही पाएगी


निष्कर्ष


दोस्तो उम्मीद करता हु आपको मेरी लिखी कविता मेरी माँ बूढी होती जा रही है। पसन्द आयी होगी और पसन्द आये भी क्यों न आप भी अपनी माँ से बेइंतहा प्यार जो करते हो। इसके साथ ही आप माँ के उस प्रेम से भी रिलेट कर पाए होंगे जो दिन प्रतिदिन माँ हमसे निःस्वार्थ करती है। इस कविता के बारे में आपकी क्या राय या सुझाव है ।मुझे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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