मेरी माँ बूढ़ी होती जा रही - तरुण कुमार
मेरी माँ बूढ़ी होती जा रही
मुझे हर रोज एक चिंता खाये जा रही है
मेरी माँ, बूढ़ी होती जा रही है
चिंता यह नही की, उसकी सेवा कैसा करूँगा
चिंता तो यह है, फिर में उसके आँचल में कैसे सोऊंगा
फिर कौन, मुझे ऐसा लाड लड़ायेगी
फिर कौन, मुझे अपनी गोद मे सुलाएगी
फिर कौन, मेरे बालो में अपना हाथ फिरेगी
फिर कौन, मुझे बचपन वाली लोरिया सुनाएगी
फिर कौन, थके हारे को देर तक सोने देगी
फिर कौन, देर तक सोने पर डाँट फटकार देगी
माँ तू ही तो है, जो मेरा हर दर्द जान जाएगी
माँ तू ही तो मेरे हर दर्द के लिए मरहम लाएगी
माँ फिर मेरी हर चीजो का ख्याल कौन रखेगा?
माँ, फिर मेरे उलझे सवालो का जवाब कौन रखेगा
गलत राहो पर जाने से कौन रोकेगा
माँ कुछ गलत कर दु तो कौन टोकेगा
माँ मेरी पसंद को अपनी पसंद कौन मानेगा
माँ फिर तुझसे बेहतर मुझे कौन जानेगा
माँ फिर मेरी पसंद का खाना कौन बनाएगी
माँ तेरे बिना मुझे अपने हाथों से खाना कौन खिलायेगी
माँ में बड़ा हो गया हूं पर शर्ट का बटन बन्द करना नही आता
सच कहूं तो माँ मुझे तेरे बिना जीना नही आता
माँ तू तो बूढ़ी होकर भी बेसाखी से चल जाएगी
माँ तू तो बेसाखी है मेरे जिंदगी की, और तेरे बिना यह जिंदगी चल नही पाएगी
निष्कर्ष
दोस्तो उम्मीद करता हु आपको मेरी लिखी कविता मेरी माँ बूढी होती जा रही है। पसन्द आयी होगी और पसन्द आये भी क्यों न आप भी अपनी माँ से बेइंतहा प्यार जो करते हो। इसके साथ ही आप माँ के उस प्रेम से भी रिलेट कर पाए होंगे जो दिन प्रतिदिन माँ हमसे निःस्वार्थ करती है। इस कविता के बारे में आपकी क्या राय या सुझाव है ।मुझे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।